रिपोर्ट – जनता की आवाज़, बिलासपुर।

कोटा तहसील के अंतर्गत ग्राम केकराखोली से एक चौंकाने वाला मामला प्रकाश में आया है, जहाँ पूर्व में जब्त की गई रेत—जिसकी मात्रा लगभग 100 ट्रैक्टर के समतुल्य बताई जा रही है—को कुछ ट्रैक्टर चालकों द्वारा बिना किसी वैध रॉयल्टी अथवा अनुमति के उठाकर ले जाया जा रहा है।
यह मामला न केवल अवैध रेत खनन की गंभीरता को उजागर करता है, बल्कि इस बात की ओर भी संकेत करता है कि प्रशासनिक निगरानी और उत्तरदायित्व में भारी शिथिलता व्याप्त है।
जब्त की गई रेत राज्य की संपत्ति मानी जाती है और इसे सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी संबंधित प्रशासनिक अधिकारियों की होती है। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि यदि जब्त रेत को ही बिना किसी वैधानिक प्रक्रिया के पुनः उठा लिया जाता है, तो यह स्पष्ट रूप से एक दंडनीय अपराध की श्रेणी में आता है।
स्थानीय लोगों का आरोप है कि यह कार्यवाही किसी अकेले व्यक्ति द्वारा नहीं, बल्कि एक संगठित गिरोह द्वारा की जा रही है, जिनके पीछे प्रभावशाली लोगों का संरक्षण प्राप्त है। सूत्रों की मानें तो यह “कमीशन का खेल” इतने गहरे तक फैला है कि कागज़ों पर कार्यवाही दिखाने मात्र से जिम्मेदारी की इतिश्री कर ली जाती है, जबकि ज़मीनी स्तर पर हालात बिल्कुल विपरीत होते हैं।
यह प्रकरण यह भी सिद्ध करता है कि छोटे व्यापारियों और मजदूरों पर सख्ती दिखाने वाला तंत्र, बड़े माफियाओं के सामने मूक और निष्क्रिय बना रहता है। यही कारण है कि आज रेत माफिया खुलेआम यह कहते सुने जाते हैं —
“हमने हर जगह भुगतान कर दिया है, अब हमारा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता।”
❗ यह कथन सिर्फ एक गर्वोक्ति नहीं, बल्कि तंत्र की विफलता का घोषणापत्र है।
बिलासपुर की पवित्र भूमि आज इस अव्यवस्था की शिकार हो चुकी है।
यदि समय रहते कठोर कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले दिनों में प्रशासनिक विश्वसनीयता की जड़ें पूरी तरह हिल जाएँगी।
अब प्रश्न यह नहीं है कि रेत चोरी हुई — प्रश्न यह है कि किसकी मिलीभगत से हुई? और क्या दोषियों पर कोई कठोर कार्यवाही होगी, या फिर यह भी बाकी मामलों की तरह फाइलों में दफन कर दिया जाएगा?
सम्पर्क सूत्र –
जनता की आवाज़ न्यूज़ पोर्टल, कोरबा।